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वेद पुराण है गाता इतिहास दोहराता
विकास गाथा में श्रम का जिक्र आता
निकला कर्मभूमि पर सुसज्ज होकर
श्रमवीर जमाने मे कर्मवीर कहलाता
भावि प्रबल को ठोकर मारकर जाता
गर्मी सर्दी बारिश के जो थपेड़े सहता
आपने हाथों भविष्य लिखने निकला
श्रमवीर जमाने मे कर्मवीर कहलाता
उद्यम से ही मानव कार्य सिद्धि पाता
सोच विचार कोरी कल्पना से न होता
सोते सिंह के मुंह में शिकार न आता
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