
पहुंच तो गए है एक अंधेरी सी सुरंग में
जिसका न कोई ओर है न कोई छोर है
झुरमुट अंधियारा बेखौफ फैलता रहा है
और आसपास करीब झांकते जा रहे है
सपनो की दुनिया हमें कहां ले आयी है
स्वप्न विहीन अंधियारा छाता जा रहा है
निशा घनी निद्रा आंखों से कोसो दूर है
पैरो की बेड़ियां जैसे सपने थाम रही है
लगता है भोर क्षितिज में नजर न आए
कि कदम थकने लगे मन हारने लगा है
कभी निकल नही पाऐंगे इन बेड़ियो से
कि भूख का सवाल सदा पहले रहा है
दिल मे खौफ है फिर आंधी आएगी जो
विचारो को धर्म की वेदी पर स्वाहा करे
विवशता ने घेर रखा खडे एक कोने में
चक्रवात गुजरने का इंतज़ार कर रहे है
भयावनी अंधियारी रात में क्या ढूंढ रहे
कि अब यहां ठौर नजर नही आ रही है
कौन किससे कहे अब टूट न जाना यहां
कि सपने आगे की राह आसान बनाएंगे
नही हो तमन्ना कुछ कर गुजरने की अब
न थमेंगा तूफान न सुरंग का ओर छोर है
न ही सुरंग में अब प्रकाश आएगा कभी
टूट गयी निद्रा अब सपने टूटते जा रहे है
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments