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पहुंच तो गए है एक अंधेरी सी सुरंग में
जिसका न कोई ओर है न कोई छोर है
झुरमुट अंधियारा बेखौफ फैलता रहा है
और आसपास करीब झांकते जा रहे है
सपनो की दुनिया हमें कहां ले आयी है
स्वप्न विहीन अंधियारा छाता जा रहा है
निशा घनी निद्रा आंखों से कोसो दूर है
पैरो की बेड़ियां जैसे सपने थाम रही है
लगता है भोर क्षितिज में नजर न आए
कि कदम थकने लगे मन हारने लगा है
कभी निकल नही पाऐंगे इन बेड़ियो से
कि भूख का सवाल सदा पहले रहा है
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