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खोल मुंह करिए वंदना जयकारा लगाइए
न शोर न तख्तियां हो न ज्यादा बतियाईए
संसद एक मंदिर है जहां गरिमा प्रधान है
आइए इस मंदिर में सिर झुकाकर आइए
रहो मूरत के समक्ष आंख मूंद बैठ जाइए
बोलने का मन हो मन ही मन गुनगुनाइए
संसद की गरिमा है गरिमा से इसे चलाइए
ज्यादा लगे जयकारा सुर में सुर मिलाईए
देर है अंधेर नही समय का इंतज़ार करिए
बैठ पुजारी के पास राम नाम गुनगुनाइए
मन में न हो हीन भावना सेवापूजा भुलाइये
आओ सेवा के नाम चढावा चट कर जाइए
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