समयोचित संस्कार's image
Poetry1 min read

समयोचित संस्कार

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 16, 2023
Share0 Bookmarks 8 Reads0 Likes

जीवन केल पौध सा परत दर परत चढ़ा
जिया जो पल वह नई परत चढाता गया

खट्टे मीठे पलो की मैं माला पिरोता गया
समीक्षा में परत दर परत उतार भी रहा

कहते है बुजुर्ग धर्म ग्रंथ शाश्वत सत्य है 
जिसकी शिक्षा काल खंड में अक्षुण्ण है

समय बदलता रहा पर धर्म नही बदला
संकीर्ण मनोवृति ने धर्म का ह्रास किया

मैं अपने संस्कारो की दुहाई देता रहता
जो संस्कार मेल नही खाए बदल गया

क्या देता विरासत में खुद स्थिर न रहा
सत्य की दुहाई दे असत्य में उलझ रहा

वक्त पर जो परत दर परत खोल बैठा
मासूम को सत्य पढ़ाता झूठ सिखाता

कितना बेबस रहा समय के बहाव में
कैसे कहूं समयोचित संस्कार न दिया

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts