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कृष्ण के द्वार गरीब सुदामा आये।
मित्र स्वागत कर सिंहासन बैठाए।
सत्कार कर कुशल क्षेम पूछते रहे।
पुराने दिन याद कर हँसे मुस्कराए।
भाभी ने क्या भेजा कृष्ण पूछ रहे।
निर्धन सुदामा शर्म से पानी हो रहे।
मित्र ने खींचकर निकाली पोटली।
जो सुदामा कोख में दबाकर बैठे।
खोल पोटली कृष्ण तंदुल खा रहे।
देखते देखते दूसरी मुट्ठी खा बैठे।
तीसरी मुठी ली रुक्मणि हाथ थामे।
नाथ इसमे हम सबको हिस्सा मिले।
स्वागत सत्कार में कुछ दिन गुजरे।
सुदामा गरीब ही वहां से विदा हुए।
मित्रता याद कर सुदामा खुश हुए।
घर आ कृष्णकृपा से अभिभूत हुए।
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित
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