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समय की बात एक योगी सदन में आया
सदन कमजोर हुआ सदन को ललकारा
आवाज़ उठाई जनसेवा से सरोकार रहा
राजनीतिक पूर्वाग्रह का वो शिकार हुआ
सन्यास लिया घर छोडा तब सदन आया
आपराधी मामले घडे उसे मजबूर किया
सदन जब सांसद को संरक्षण न दे सके
वह सदन छोड़ने की इजाजत मांग बैठा
आरजू मिन्नते करे रो रोकर बेजार हुआ
सदन ने सर्वसम्मति से अभयदान दिया
सदा से कालचक्र परिवर्तनशील रहा है
कभी पीड़ित रहा आज सत्ताशीन हुआ
योगी हो हर अश्क की कीमत जानी है
वक्त मांगता अश्क का कर्ज चुकाना है
धिक्कार वह पौरुष जिसने जुल्म ढाए
धर्म स्वार्थ से ऊपर राजधर्म निभाना है
रियाया बुलडोज़र एनकाउंटर के साथ
फिर कैसे निरीह आँखो में अश्रु दे जाए
कैसे कोई रोटी में नमक बच्चो को देता
कैसे रेप हो कैसे कोई गवाह मार जाए
तब तुम अकेले आज हर दर्द अकेला है
उठो आज हर अश्क तुम्हे पोंछ आना है
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