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निखट्टू शौहर

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 17, 2023
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निखट्टू था शौहर उसका 
बेचारी किसको समझाए 
चलाता है चाह की टपरी 
नफा घाटा समझ न आए

बकरे की मां खेर मनाती
भेड़िया आया वो चिल्लाए
भलमनसाहत के बीच है 
वे लौट जाते वो मुस्कराए

बीबी जब भी मांगे पैसा 
वह खाली जेब दिखलाए
सौगात देने की बात आती
वो महँगे तोहफे बांट आए

बेजार होती बीबी बेचारी 
उससे वह कैसे पार पाए
वह नसीब का रोना रोती
उसे सूरत समझ न आए

नींव विहीन तो तम्बू होते 
आंधी आती वे उड़ जाए
भानुमती का कुनबा यह
वहां संस्कार कहाँ आए

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