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नारी मन की थाह

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 30, 2023
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नारीमन संरचना की पुरुष थाह न पा सकता
विधि ने सृष्टि में रची नारी जटिलतम रचना है

पुष्पित वृक्ष जैसे सर्वत्र सुगन्‍ध  फैला देता है
प्रकृति में नारीजीवन पुष्पित पल्वित होता है

नारी जीवन में रूपरंग गंध की ललक होती है
नारी प्रकृति रूपा है वह मदमाती इठलाती है

कामिनी और माँ में फरक नही कर पाता है
नारी को समझने में पुरुष भूल कर जाता है

कामिनी नारी रूप है पर मातृरूपा नही होती 
एक नारी दो रूप है मातृरूप कामिनीरूपा है
 
असमर्थ पराजित दुर्बल को माँ आँचल मिले
मातृ वृक्ष सार्थक है पथिक को छाया देता है

माँ सात्वीक है आत्मसन्तोषी समर्पण मूरत है
माता वात्सल्य मूर्ति दान प्रदात्री क्षमादाता है

कामिनी निषेध,आलोचना,कामना, याचना है
जो उपेक्षा न करे कामिनी निडर को चाहती है

सरल संतुष्ट समर्पित है समर्पण न चाहती है
विसर्जन नही सदा पुरुष का अर्जन चाहती है

असमर्थ पराजित दुर्बल पुरुष प्रिय नही होता
कामिनी को जूझता पुरुष कमनीय लगता है

मातृरूप कामिनी की पुरुष कामना करता है
मगर कामिनी की प्रकृति अलग ही होती है

कामिनी समृद्धि वस्त्र आभूषण सता प्रिय है
कामिनी को सुख समृद्धि की ललक होती है

कामिनी संयत रहे तो जीवन सफल करती है
पुरुष जीवन मे नारी जीवनदायिनी होती है

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