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भरमाता कोई नही होता स्वर्णमृग प्रिये
देवी जिद छोड़ो ये कोई आसुरी माया है
सृष्टि के इतिहास में स्वर्णमृग नही हुआ
देवी पहचानो इसे यह जग की माया है
देवी जिद पर अड़ी मृग खूब ही प्यारा है
देव आस पूरी करो मन इस पर आया है
नारीहठ के आगे पुरुष झुक ही जाता है
ले धनुष बाण चले रघुराई कैसी माया है
मायापति राम आज माया में भरमाये है
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