
Share0 Bookmarks 0 Reads0 Likes
न खाऊँगी न खाने दूंगी हल्के में कह बैठी
भावी के गर्भ में नही झाँका हल्के पचा बैठे
मामला हकीकत का जामा पहनके आया
दिन में आसमान तारों से भरा नजर आया
तीज त्यौहार रोज व्रत उपवास रहने लगा
किचन में यदा कदा ही चूल्हा जलने लगा
दिन दिन शांति यज्ञ में शांति से बैठे रहना
और अशांति दिवस में तो तांडव होने लगा
व्रत उपवास नही तब लडाई झगड़ा होता
तब किचन का और भी गजब हाल होता
दिल के गहराई में आस्था भरी भावना थी
अन्नपूर्णा शांति से कहे खाऊँगी खाने देती
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments