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नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान हो
पंसारी की तराजू में मोहब्बत का जहान हो
नफरत सस्ती रहेगी मोहब्बत महंगी बिकेगी
महंगाई अगर रहेगी तब कहाँ दुकान चलेगी
कौन नादान ये दुकान खोलने निकल रहा है
जब हर नुक्कड़ पर नफरत की दुकान होगी
महंगाई की मार हो जठर में आग लगी होगी
धर्म टकराएंगे कहां मोहब्बत की बात होगी
नफरत के सिक्के मोहब्बत न खरीद पाएंगे
मोहब्बत की लौ से क्या नफरत जीत पाएंगे
नफरत के बीच मोहब्बत की दुकान लगाएंगे
चले गंजो की नगरी में कहाँ कंघे बेच पाएंगे
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