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मेरी गली का पियक्कड

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 7, 2023
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मेरी गली का पियक्कड,कोई जमाने का हुनरमंद था
एक अदद बीबी और दो नन्हे से प्यारे बच्चों के साथ
पुश्तेनी घर के नाम एक टूटे से मकान में रहता था
सम्पति के नाम सब शराब की भेँट चढ़ा चुका था।

सुबह गली में बेहद शरीफ व मासूम नज़र आता था
बड़ी बातें करता राजनीतिक जानकार बन जाता था
दिनभर जाता इधर उधर  दस बीस कमा लाता था
शाम होते होते वो सब  ठेके की भेंट चढा आता था।

जिस दिन नही कमाता बीबी बच्चो की शामत आती
बीबी की कमाई बर्तन भांडे बच्चो की फीस किताबे 
जो भी हाथ पडता सब शराब की भेंट चढ़ जाता
ठेके की बोतल गटगटाकर वो शहंशाह बन जाता था

रोज रात गली के नुक्कड़ पर  तमाशा दिखाता था
चिल्ला चिल्लाकर  कहता आत्मनिर्भर हो जाओ
पुश्तेनी सम्पति जमाबंदी सब कुछ ही उड़ा डालो
हिम्मत से अपने बूते पर कुछ करने का मन बनालो

जब कभी ढूंढ घर का बर्तन सामान बेच आता था
नशे में चिल्लाता मैं भेल सेल रेल सब बेच आया 
क्यो बैठे पुराने कबाड़ पर  तुम भी सब बेच डालो
आत्मनिर्भर होकर तब अपना जलवा दिखा डालो।

बोतल के नशे में घर के स्वर्ग को आग लगाता था
अपनो की जिंदगी नरक बना कैसे खुश रह पाता था
जीवन का फलसफा कहाँ मन को शांत कर पाता है
होश में आ वोही अपनी करनी पर आंसू बहाता था।

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