
Share0 Bookmarks 14 Reads0 Likes
वह परिंदों का कलरव वो मुर्गे की बांग।
सुबह चलती आटाचक्की वो मेरा गांव।
फैली हुई है खुश्बू वह सुहावनी सुबह।
गांव पर धुंवे की चादर फैलाती साँझ।
शाम गायें लौटती तो रास्ते जाते रुक।
खुरों बनी डगर चले भैंस ऊंट के झुंड।
गर्मी में दाना पानी लेते पंछी के झुंड।
सांझ में कलरव करते पंछी लौटे नीड।
वर्षा की सौंधी सौंधी मिट्टी की महक।
गर्मी की छुट्टी में नानिहाल की ललक।
वफादारी में पशुओं से बौने दिखे हम।
कुते करे चौकीदारी हर गली की बस।
स्वर्ग सा सुंदर जहां बसता मेरा गांव।
कोमल मन मे बसा खुशहाल जीवन।
जब पीछे झांकते न लौटता बचपन।
खोया क्या पाया सदा रहती उलझन।
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments