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नही कालिदास से मूढ़ नही वे गंवार थे
नही विदुषी पत्नी थी लात मार भगाती
जब यह इन्तहा हुई थी मासूमियत की
ये कहानी हुई महाकवि तुलसीदास की
सादगी प्यार का समुंदर हिलौरे लेता था
बरसो बाद एकाकी जीवन में बहार हुई
न माँ बाप भाई बहन न प्यार जाना था
जीवन मे भार्या आयी जीवन बहार था
भार्या प्रतिमूरत प्यार की उसे ख्याल था
जीवन का हर पल उसके नाम कर दिए
सादा सा एक वाकया जीवन बदल गया
मायके गयी बीवी के पीछे वह चल दिए
अंधियारी थी रात ऊपर से भारी बरसात
भयंकर बाढ़ खबर नही है शव पर सवार
उतर पार गया ससुराल खुला न था द्वार
अजगर को रस्सी जान कर खिड़की पार
कैसा था प्यार न देखा कुदरत का कहर
क्या थी मुसीबत पहुंचे ले आसमान सर
देख प्यार में पागल भार्या तो बरस पड़ी
प्यार का था उद्गार वो उलहाना देने लगी
हुई होती अगर आधी भी प्रीत श्रीराम से
हो जाते भवसागर पर रामजी भला करे
तब तो सन्यास हुआ ज्ञानचक्षु खुल गए
इतिहास में वे महाकवि तुलसीदास हुए
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