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लाइव मीडिया से सब कतरा रहे
प्रेसवार्ता का दौर दम तोड़ रहा है
सोशल मीडिया पर फेंक न्यूज़ है
प्लांट खबरे ही सशक्त हो रही है
बड़ा बजट छबि चमकाने लगा
मीडिया में खबरे प्लांट हो रही है
विश्वस्तरीय मीडिया खबरे बोता
कौन इसकी खेती करने लगा है
कैसे उनके यहां से खबरे आती
जिसमे तथ्य की मौलिकता नही
उस खेत में कौन फसल उगाता
कैसे वे इससे बेखबर हो जाते है
खबरे प्लांट होती तथ्य दम तोडे
कौन समाज विषाक्त बना रहा है
इनके सहारे झूठ परोस जाता है
सवालों में सवाल जवाब नही है
यह खबरे किसका भला करती
कौन इसकी कीमत चुकाता है
सुरक्षा एजेंसी समाज को बचाए
या फैलाने में उनका भी हाथ है
निवेशक शेरबाजार में चुकाता है
हर खबर की अपनी कीमत है
कोई उसकी जेब काट जाता है
वह बेबस हुआ देखता जाता है
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