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कांच की दीवार

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 5, 2023
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जीवन निकल गया रेत की तरह
आपस मे एक दूजे को समझाते

न वे कुछ समझा सके मुझको
न ही मैं उन्हें कुछ समझा पाया

बीच मे बनी थी कांच की दीवार 
वे उस पार बैठे हम इस पार थे

जीवन का दर्शन ही कुछ ऐसा 
वे अपनी ऐंठ में हम अपनी में 

ईगो की जंग विश्व युद्ध सी जंग
दुनिया ऐसी उलझ बैठी इस मे

जब अपनी बोलने पर आ बैठे
फिर सुननी थी किसे किसकी 

अहं जननी विश्व में हर जंग की
कुछ तुम छोड़ते कुछ हम छोडे

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