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जो कभी तेरा अपना था

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 15, 2023
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दोस्त भाई था इसी गली का बस्ती का था
तेरे घर का सदस्य रहा सदा हमसफर था

कहाँ गलती मेरी थी या तू बेगैरत निकला
वक्त रंग बदले तू सभ्य से और सभ्य हुआ

मुर्गा बोला रोज सुबह सवेरे बांग लगाता
तुमको जगाता वक्त का अहसास कराता

फेंके जानेवाले कचरे से तो भूख मिटाता
गाहे बगाहे शहीद होता तेरी भूख मिटाता

बैल रहा तेरा तू भी प्यार से घर मे रखता 
खेत जोतता तुम्हारे तुम्हे ढोकर ले जाता

मैं तेरा घोड़ा था तुझको सैर कराने जाता
दूर दराज इलाको में पल में पहुंचाता था

तूमने कुत्ता ही कहा इज्जत नही दे पाया
तू वफ़ादारी के नाम मेरी कसमे खाता था

मजाल कोई अनजान करीब फड़क पाए
गली में पड़ा था तेरी झूठन पर पलता था

कौन मुझे खिलाता मैं भूखा ही पड़ा रहा
घरगली में अपनो से बेजार आवारा हुआ

तूने बेगार से बेजार नसीब पर छोड़ दिया
आधुनिक की दौड़ में तू मशीनों का हुआ

नही तेरे करीब जो कभी तेरा अपना था
वक्त अहसास देगा वक्त सगा नही होता

आज गली में तेरी झूठन भी सड़ांध देती
दोस्त से बढकर मशीने दोस्त नही होती

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