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जीवन है बहता पानी

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 3, 2023
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महा शिव रात्रि के पर्व पर हुई भंग की तैयारी
भक्त जन थे बेताब सभी धर्म मे रंग जाने को

चक के पी सबने ही देख देख सब दंग हो रहे
धर्म भीरु रह गए कोरे नशे को पाप मान बैठे

बहुत समझाया उनको मिलता शिव प्रसाद है
शिव कृपा हुई भारी फिर भी चुक गए अनाड़ी

भंग के नशे में हंसे किसी की थी रोने की बारी
अपना रंग दिखाए धर्म मे थी उधम की तैयारी

नशे में झूमें भक्त सारे माहौल भक्तिमय भारी 
भंग की तरंग असर बताए उधम करे नर नारी 

धमाचौकड़ी से दूर भंग से दूर जो कोरे रह गये
हालत भई सांप छछुंदर सी ना हंसे ना रो सके

भक्त थे मस्ती में चूर वे कोने में दुखी होते रहे
तरस करे भक्त दुर्दशा पर जो मस्ती में गा रहे

कौन कब समझ पाया यह थी भोले की माया
कब वक्त हिसाब करेगा क्या खोया क्या पाया 

कहे लोग जमाने मे मस्त रहो भंग की तरंग में 
जीवन है बहता पानी क्या खोना क्या पाना है

जीवन नश्वर मान बैठो जा भोले की चरण मे
मल लो भभुत बदन पर क्या पाना जीवन मे

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