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जीवन अल्हड़ नदी सा

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 30, 2023
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जीवन अल्हड़ नदी सा अविरत बहते जाना
किधर राह कहाँ मंजिल राहे तलाशते जाना
 
राह में रोडे अगर आए थोड़ा ठिठक जाना
राह कोई न रोक पाए निरंतर चलते जाना
 
थोड़ा इधर थोडा उधर अग्रसर होते जाना
ध्येय में बढ़ना साथ बहे संग बहाते जाना
 
गम खुशियां बांटना सरल चलना इठलाना
घट कूप पोखर जो पडे राह में भरते जाना
 
बंजर भूमि से गुजरे हरा भरा बना जाना
समय बहाव में प्रकृति ने चाहा बना डाला
 
सृष्टि अविकल संयंत्र जिसके कलपुर्जे सारे
तराशे अनवरत अपरिहार्य वहां लगा जाना
 
समय राह बना जाए कदम बढ़ा चले जाना
हर रंग में रंगना दूषित तो स्वच्छ हो जाना
 
ठोस तरल शीतल उष्ण बदलती नीर रहना
सरल सौम्य बदलाव आत्मसात कर जाना
 
प्रयाण के अंत विहीन समुद्र के अंतरग में
परमतत्व आगोश में उत्साह से समा जाना

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