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कालिख में अडिग है कोठरी में उजले होते।
सन्मान से भिड़ते गोली खाते गाली न खाते।
पानी हलक में अटका सवालों से न भागते।
गाली संतोष नही गोली खाते गाली न खाते।
दुश्मन बड़ा भी था जनता के हमराज होते।
लाल आंख दिखे गोली खाते गाली न खाते।
प्रशंसा पाने दौड़ते आत्मसन्मान पर मरते।
सन्मान दिखता गोली खाते गाली न खाते।
भ्रष्ट बेईमान से घिरे रहे किसे बचाने जाते।
विकास दिखता गोली खाते गाली न खाते।
दोस्त से हाथ मिले दोस्त को मिटाने भागे।
हमकदम न बचे गोली खाते गाली न खाते।
छबि पर दाग लगे बलात्कारी बचाने जाते।
मददगार न होते गोली खाते गाली न खाते।
साथ पाने न ललचाते बाहुबली मिटा जाते।
राष्ट्र निर्माण में गोली खाते गाली न खाते।
कानून के सहचर थे दोस्त बचाने न जाते।
रिश्ते की बलि दे गोली खाते गाली न खाते।
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित
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