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हाथ पैर कांप रहे है बदन में सिहरन है
वर्षभर मटरगस्ती एग्जाम का मौसम है
परिवार की आशा है दिल मे निराशा है
याद हुआ है थोड़ा वह भी धूमिल सा है
पोथी का समंदर सवालों का बवंडर है
जिसको पकड़ता हाथ से फिसलता है
सवालों का अंबार देख दिल डूब रहा है
दोस्तो की भीड़ में भी आज अकेला है
जिसे दिल साझा करें डांट की झड़ी है
पापा को हताशा मम्मी को निराशा है
कौन हाथ पकड़ तूफान से पार कर दे
दिल में डर गहरा आगे डगर किधर है
समय हाथ से फिसले सलाहें बहुत है
जिससे दिल खोले वह डराने लगता
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