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एग्जाम का मौसम

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 12, 2023
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हाथ पैर कांप रहे है बदन में सिहरन है
वर्षभर मटरगस्ती एग्जाम का मौसम है
परिवार की आशा है दिल मे निराशा है
याद हुआ है थोड़ा वह भी धूमिल सा है 

पोथी का समंदर सवालों का बवंडर है
जिसको पकड़ता हाथ से फिसलता है
सवालों का अंबार देख दिल डूब रहा है 
दोस्तो की भीड़ में भी आज अकेला है

जिसे दिल साझा करें डांट की झड़ी है
पापा को हताशा मम्मी को निराशा है 
कौन हाथ पकड़ तूफान से पार कर दे
दिल में डर गहरा आगे डगर किधर है

समय हाथ से फिसले सलाहें बहुत है 
जिससे दिल खोले वह डराने लगता है
कैसे सहूं खुदकशी बिन डगर कहाँ है
दो शब्द सांत्वना मिले ख्याल आता है

जो समय खोया प्यार से मोड़ सकता
कोई तो सिखाता यहां रोज परीक्षा है
अगर कमजोर था ध्यान न लग सका
रास्ते और थे यह अंतिम मंजिल नही

धर्म ग्रंथ सिखाते विधि ने जो सोचा है
फल की चिंता क्यों हो गीता कहती है
नियति राह बनाए जहाँ हमारा पार्ट है
दुनिया की मशीन के हम एक पार्ट है

अब कोई डर नही किसी हताशा का
क्यों डरुं खुदकशी का कारण कहां है
नियति जो एक डगर बंद कर देती है
नई राह खोल दे जहाँ जरूरत होती है

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