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चलते चलते किस मोड़ पर आ गए है
ठिठके पल भर जिस मोड़ पर आए है
दोराहे पे खड़े सोच रहे जाना किधर है
खबर नही राह कहाँ मंजिल किधर है
जीवन के हर मोड़ पर दोराहे पडते है
हर घड़ी जीवन मे द्वंद से लड़ते रहे है
द्वंद से ऊपर उठ अगर आगे बढ़ पाए
बोलनेवाले को छोड बोल देखते जाए
शुद्ध सात्विक आहार को जीवन बनाये
विचार सात्विक कर नियंत्रित कर जाए
सीधे सरल बन पाए सत्य पर टिक जाए
ज्ञान ध्यान प्राणायाम में मन रमाते जाए
काम क्रोध लोभ लालच से ऊपर उठे
स्थिर मन होता जाए द्वंद शांत हो जाए
मोक्षके द्वार के चार द्वारपाल कहलाए
शम, विचार,संतोष सत्सङ्ग में रम जाए
किसी एक पकड़ कर अपना बना पाए
कुंठा विगलित मन हो मोक्ष मिल जाए
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