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वर्षो पहले दफन किया जिंदा नजर आ रहा है
गमगीन माहौल दिल को चीर रही हर आहट है
हंसी खुशी के गुलदस्ते रहे क्यों आज वीराने है
प्राण हलक में अटके डर डायन बन आ रहा है
साम्प्रदायिकता का राग ठंडा पडता जा रहा है
अंगारे राख में तब्दील हुए कमल मुरझा रहा है
न गालीगलौज न लडे जिंदा लोगो की रीत नही
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