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Peace PoetryPoetry1 min read

डर डायन बनकर आ रहा है

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 11, 2023
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वर्षो पहले दफन किया जिंदा नजर आ रहा है

गमगीन माहौल दिल को चीर रही हर आहट है


हंसी खुशी के गुलदस्ते रहे क्यों आज वीराने है 

प्राण हलक में अटके डर डायन बन आ रहा है


साम्प्रदायिकता का राग ठंडा पडता जा रहा है

अंगारे राख में तब्दील हुए कमल मुरझा रहा है


न गालीगलौज न लडे जिंदा लोगो की रीत नही

परछाई से घबराते डर डायन बनकर आ रहा है


हर आहट पर कान लगाए चिरशांति छा रही है

डरना नही एकजुट रहना विश्वगुरु आगाह करे


वक्त है आज लड़ पडना अदृश्य दुश्मन खड़ा है

वह कब टूट पडेगा अजीब खौफ का माहौल है 


मयंक की मद्धिम चांदनी में दिल घबरा रहा है

दिल पर हावी हो डर डायन बनकर आ रहा है


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