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सुबह सुबह का हसीं नजारा है।
इक्के दुक्के टेबल पर रौनक है।
बाकि तो सब ही बंजर खेत है।
जानते साब सरकारी दफ्तर है।
सूरज उठा टेबल रोशन हो रहे।
धीरे धीरे रौनक बढ़ती जा रही।
पूछे वेट करो बाबू बोल पड़ता।
दर्शक दीर्घा में कुर्सी कम पड़ी।
ग्यारह बीस पे चा टाइम हुआ।
सब पलटे तो केंटीन भर गया।
दौर चाय पकोड़े का चल रहा।
बाबू ग्राहक साथ खड़े हो रहे।
जमी महफ़िल बिल ग्राहक देते।
बारह बीस को टेबल तक आए।
ग्राहक देखता वे फाइलें ढूंढ रहे।
तब एक बजे ये फरमान आया।
इंतजार करो अब लंच हो गया।
मजा चाय पकोड़े और हम तुम।
चोली दामन का साथ बना रहा।
न वे न हम चले दिन पूरा हुआ।
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित
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