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सुबह सुबह का हसीं नजारा है।
इक्के दुक्के टेबल पर रौनक है।
बाकि तो सब ही बंजर खेत है।
जानते साब सरकारी दफ्तर है।
सूरज उठा टेबल रोशन हो रहे।
धीरे धीरे रौनक बढ़ती जा रही।
पूछे वेट करो बाबू बोल पड़ता।
दर्शक दीर्घा में कुर्सी कम पड़ी।
ग्यारह बीस पे चा टाइम हुआ।
सब पलटे तो केंटीन भर गया।
दौर चाय पकोड़े का चल रहा।
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