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समय हुआ था सन चौदह का
चौसर की बिसात बिछती गई
यह कहना जरा मुश्किल हुआ
कौन किसके साथ हुआ खड़ा
झूठ फरेब का कॉकटेल बनाते
भृष्टाचार उजागर करते जा रहे
सबने अपने पांसे जमा लिए थे
नीति अनीति संग में हुई खड़ी
द्युत क्रीड़ा का दौर चलता रहा
अंधे देखे कौन पांसे फेंक रहा
धर्मधुरंधर मूक दर्शक बने हुए
युधिष्ठिर युग का शिकार हुआ
आखिर वह प्रयास सफल रहा
पांडव हारे उन्हें वनवास हुआ
द्रोपदी घिरी थी कौरवों के बीच
हार बैठे थे द्रोपदी दांव पर लगी
दुशासन साड़ी पर हाथ डालता
पांडव सिर झुकाकर थे बैठे हुए
लोकतंत्र की लाज खतरे में थी
कलयुग में कृष्ण नही आ सके
सता का आतंक इस कदर फैला
लोकतंत्र बचाना दूभर होता गया
जब जब अनीति शासन करती
तो महाभारत का सूत्रपात हुआ
महाभारत मगर क्या दे सका है
जब हुआ धरा रक्त से सींच गया
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