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खोया खोया चाँद फैली हुई थी चाँदनी
पूर्णिमा की रात बहुत कुछ कहती रही
भूला देती वजूद दिल पर दस्तक देती
हसीन ख्वाबो की अजीब दास्तान रही
उस पल का दीदार पहला पहला प्यार
चाँदनी वो थी रात प्यार भरी मुलाकात
प्रेम की इस गली में वह थी या मैं रहा
खोए इस कदर वक्त का नही भान था
ध्यान के पलों में अपने को भुला बैठा
वह कहाँ रही और मैं ही था कहाँ रहा
उतरा चाँद धरा पर था चाँद आगोश में
लब तो खामोश हुए लंबी बाते हो रही
करके मन में याद रह रह गुरु की बात
उतरी थी अप्सरा धरा पर पहली बार
चाँदनी रातों में हसीन मुलाकातों का
अलौकिक वह ध्यान चाँदनी रातों का
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