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भृकुटि से तकदीर बदल जाती
मगर चक्षुहीन कहते रहते सभी
देर हुई है चक्षु उघाड़ो महादेवी
आसभरी नजरो से देखते सभी
न्याय आज गरीबो से दूर खडा
गरीब किसका द्वार खटखटाए
अभ्यर्थी द्वार पर बरसो पड़े हुए
न्याय वकील के शुल्क बढ़ चले
न्याय की तराजू डगमगाती रही
कहते है अनभिज्ञ को क्षमा नही
न्याय में फैसले बदल जाते तभी
आपके चक्षुपटल बंद है फिर भी
न्याय में देरी न्याय से दूरी बताते
आपकी दृष्टि में सब समान रहते
न्याय सरल और सुलभ बनाइए
चक्षु पटल उघाड अब निहारिए
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