Share0 Bookmarks 31561 Reads0 Likes
राज भाई भाई को आपस मे बांटेगा
हिंदु धर्म की नींव को हिला डालेगा
बुजुर्गो का धरा पर सदा सन्मान रहा
धर्म मे भाई धरा पर पिता समान रहा
एक भाई पितृ प्रेम में राज ठुकरा चला
दुजा भातृप्रेम में राज न स्वीकार सका
जनसभा पितृआज्ञा की दुहाई दे रही
भाई जन समाज में राज नकार गया
उस मन मे आक्रोश के बवंडर उठ रहे
कुछ भी हो भाई को लौटाने चल पड़ा
भातृप्रेम का अटूट बंधन राजमोह हारा
अश्रुपूरित चेहरा लिए आज भाई खड़ा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments