भातृ प्रेम's image
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राज भाई भाई को आपस मे बांटेगा
हिंदु धर्म की नींव को हिला डालेगा

बुजुर्गो का धरा पर सदा सन्मान रहा
धर्म मे भाई धरा पर पिता समान रहा

एक भाई पितृ प्रेम में राज ठुकरा चला
दुजा भातृप्रेम में राज न स्वीकार सका

जनसभा पितृआज्ञा की दुहाई दे रही
भाई जन समाज में राज नकार गया

उस मन मे आक्रोश के बवंडर उठ रहे
कुछ भी हो भाई को लौटाने चल पड़ा

भातृप्रेम का अटूट बंधन राजमोह हारा 
अश्रुपूरित चेहरा लिए आज भाई खड़ा

भाई को आशीष दे पितृवचन दुहाई दी
वनवास से लौटने का इनकार कर गया

आज किस मुंह से वह भातृत्व लजाता
भाई ने राज छोड़ा कैसे ग्रहण कर पाता

राजगद्दी के हकदार कोई और न होता
वनवास रहे अखंडराज आपका होगा

दे आशीर्वाद आप खड़ाऊ का दान करे
सिंहासन पर खड़ाऊ का स्थापन होगा

अनुपस्थिति में अब प्रतिनिधित्व करेगी
बोला जन समाज धन्य आज धरा हुई

श्रीराम की कीर्ति में कौन फर्क करता
भरत के राज चलाने का बखान हुआ

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