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हरकारे आन पहुंचे अयोध्या को चले तत्काल
हर्षोंल्लास था मन मे पहुंच गए मां के प्रासाद
पितृमरण जान बिलख पड़े बोले कहां है राम
माता कहे मैंने बात संभाली राम गए वनवास
अब अयोध्या तुम्हारी तुम बन जाओ महाराज
संभालो अयोध्या तुम भोगो निष्कण्टक राज
मां तूने अनिष्ट किया दे दिया राम को वनवास
छीना भाई का साथ पिता गए हुआ मैं अनाथ
वह तेरा बेटा था आज तूने जीतेजी मार दिया
माता तू कुमाता किस जन्म का बदला लिया
कैसे मुंह दिखलाऊँ कैसे तेरी मति गई मारी
सब सहारे छीन तुने मुख पर कालिख डाली
कुल कलंकिनी तू हुई मेरे सर हुआ यह पाप
जाऊं राम माता के पास शायद कर दे माफ
आये कौशल्या प्रासाद में पकड मां के पांव
कहते माँ क्या हुआ रो रोकर हुआ बुरा हाल
सपने में भी चाह नही मैं नही चाहूं राजपाट
चरण पडूंगा लौटाऊं मैं जाऊंगा राम के पास
ये विधि का विधान मां कहे जान यह संकेत
अफसोस न कर संभाल तू जिम्मेवारी आज
आगमन जान गुरु ऋषि सभासद सब आए
बोले रहे सभी हुआ जो था विधी को मंजूर
संभालो आज त्यागो मन के निर्बल विचार
पूरी करो विधि अब निभाओ समय संस्कार
बेमन तब तैयार हुए पूरे किए सब संस्कार
तेरहवीं के बाद जुट गए राजसभा समाज
सब एक स्वर बोल रहे भरत बने महाराज
माताए गुरु आज्ञा दे महाराज के ये विचार
सविनय भरत बोले है बहुत उत्तम विचार
आज मैं बेबस हुआ हो मेरी उद्दंडता माफ
पिता खो बैठा भाई रुखसत हुए वनवास
टूट गया है सम्बल मेरा नही कोई मददगार
वक्त विपरीत हुआ मैं भाई खो बैठा आज
किस मुंह साहस हो बैठूं भाई के राजपाट
स्वरचित
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