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बेताल और सत्ता में वर्चस्व

suresh kumar guptasuresh kumar gupta March 15, 2023
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बेताल पेड़ से उतार विक्रम कंधे पर ले चले
बेताल बोल पड़ा राजन क्या चाह लिए बैठे
कालचक्र का कोई अतिक्रमण न कर सके
राजन क्या पाने को अथक परिश्रम करते

कर कंधो पर सवार विश्वपटल पर सजाते
क्रूर वक्त की चाल कंकाल में तब्दील करे
सीमाओं से बाहर जाकर जो प्रयास करते
विधि के विधान को वे कहां पार कर पाए

कालचक्र अतिक्रमण का दुसाहस न करो
काल की गति जानकर परिश्रम करते रहो
अतीत सदा सर्वत्र नर का पीछा करता रहे
समय परिपक्व होता न्याय जरूर करता है

राजन परिश्रम भुलाने एक कथा सुनाता हूं
शर्त याद रखना मुंह खोला मैं लौट जाऊंगा
एक व्यापारी सत्ता में अपना वर्चस्व बढ़ाता
अर्थसहाय देकर वो देश का शासक बनाता

आखिर मित्र कर्ज चुकाने जब मौका आया
राजा ने राज्य की धनसंपदा सब सौंप दिया
जिस प्रजा ने भरोसा किया वह बेजार रही
आज जनता पांच किलो पर बसर कर रही

प्रजा के साथ विश्वासघात क्या कारण रहा
जवाब न दोगे तो सिर के टुकड़े हो जायेंगे
राजन बोले मित्र का कर्ज सदा से बड़ा रहा 
इस पहेली मे उलझ कर यह निर्णय किया

जनता की भलाई अर्थ से संभव होती रही
चुनाव पर खर्च करने से विजय संभव रहा
मित्र का कर्ज राजा बनने का कारण हुआ
राजन बोले तो बेताल स्थान पर लौट गया

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