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बेताल पेड़ से उतार विक्रम कंधे पर ले चले
बेताल बोल पड़ा राजन क्या चाह लिए बैठे
कालचक्र का कोई अतिक्रमण न कर सके
राजन क्या पाने को अथक परिश्रम करते
कर कंधो पर सवार विश्वपटल पर सजाते
क्रूर वक्त की चाल कंकाल में तब्दील करे
सीमाओं से बाहर जाकर जो प्रयास करते
विधि के विधान को वे कहां पार कर पाए
कालचक्र अतिक्रमण का दुसाहस न करो
काल की गति जानकर परिश्रम करते रहो
अतीत सदा सर्वत्र नर का पीछा करता रहे
समय परिपक्व होता न्याय जरूर करता है
राजन परिश्रम भुलाने एक कथा सुनाता हूं
शर्त याद रखना मुंह खोला मैं लौट जाऊंगा
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