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बगुला राजा और प्रदूषण

suresh kumar guptasuresh kumar gupta May 21, 2023
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पोखर में मछलियां मजे से रहती।
ताकतवर मछली राजा बन बैठी।
बहुत खुश हुए थे लोकतंत्र आया।
संविधान रचा नेता नक्की किया।

बगुला एक टांग पर मुस्तेद खड़ा।
सबने मिलकर उसे नेता बनाया।
नेता दायरा धीरे धीरे बढाता गया।
संविधान अपने लिए बदल गया।

ज्यादा टेक्स ले खुद ख़र्च बढ़ाता।
मनमानी कर सब पे हुक्म चलाता।
पोखर के संसाधन भी सुखते रहे।
बगुला धीरे धीरे मछलियां खाता।

किसी भी शक्ल में वह राजा रहा।
संसाधन पर हक से दोहन किया।
कब बारिश होती कब गर्मी होती।
रोज ही मौसम से शिकायत होती।

प्रजा दोषी नेता को दोषी ठहराती।
समय बीते कीमत जनता चुकाती।
लोग मरे ईको सिस्टम बर्बाद हुआ।
काश जनता आवाज बुलंद करती।

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