
Share0 Bookmarks 0 Reads0 Likes
जैसे कदम बढ़ते गए तो साथ मिलता गया
चले थे अकेले डगर में कारवां जुड़ता गया
चपलताओ के बीच यहां सादगी छाती गयी
बिना आडम्बर यात्रा सहजता पर आ गयी
झूठ की बुनियादो पर महल कहाँ ठहर पाए
ताश के पत्तो के महल कभी नही बन पाए
नफ़रत के पाठ पढाते जाओ इस जगत में
पर प्रेम सहज ही विजय वरण करता जाए
हुक्मरानों ने ख्वाब देखे है अविचल राज के
बदलते वक्त की पदचाप पर कौन सुन पाए
इतिहास सदा पदचाप रहा है उस अतीत का
कोई खून के बलिदान से भी कैसे मिटा पाए
वे तो इतिहास दोबारा लिखने से न रुक पाए
दशकों सत्ता में है अब भी सत्ता की चाह लिए
तानाशाह अपना इतिहास कब लिखवा पाए
न तकदीर बदल सके नही तस्वीर बदल पाए
क्यों याद दिलाते हो उन दंगो का काला सच
क्या पीड़ितों के जख्मो पर मरहम लगा पाए
इतिहास को अपने शब्दो में कैसे बयान करें
वक्त मांग करता है आप भी राजधर्म निभाए
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments