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बदलते वक्त की पदचाप

suresh kumar guptasuresh kumar gupta April 3, 2023
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जैसे कदम बढ़ते गए तो साथ मिलता गया
चले थे अकेले डगर में कारवां जुड़ता गया 

चपलताओ के बीच यहां सादगी छाती गयी
बिना आडम्बर यात्रा सहजता पर आ गयी

झूठ की बुनियादो पर महल कहाँ ठहर पाए
ताश के पत्तो के महल कभी नही बन पाए

नफ़रत के पाठ पढाते जाओ इस जगत में
पर प्रेम सहज ही विजय वरण करता जाए

हुक्मरानों ने ख्वाब देखे है अविचल राज के
बदलते वक्त की पदचाप पर कौन सुन पाए

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