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वक्त वक्त की बात है वक्त मजाक करता रहा
सत्य में धर्म बसता वे सत्यमेव जयते कहते रहे
रोज झूठ बोलते सोचा आज सच बोलकर देखे
अप्रैल फूल समझते हो सुन वे मुस्कराकर बोले
भीतर से काले दिखे बाहर से उजले नजर आते
जो बाहर भीतर से काले वेतो ज्यादा उजले रहे
घिसेपिटा सच मिटाते वक्त हुआ वक्त पहचानते
कंकाल न सजे शोकेस में झूठ को असल बनाते
कभी झूठ समस्या थी आचरण की इन्तिहा थी
झूठ समाज का श्रृंगार हुआ जीने का अंदाज़ है
वक्त बदला झूठ चलाते सच को झूठ में बदलते
बेशरम सा मुस्कराते अगर झुठ में पकड़े जाते
समाज को जगाओ नवभारत को गले लगाओ
झूठ अपनाओ असत्यमेव जयते कहते जाओ
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