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कहीं ना कहीं तो आग जरूर लगी है
धुंआ है तो आवाज़ उठना लाजिमी है
इश्क कभी नजरो से छुप न सका है
प्रेम तो इबादत का नायाब तरीका है
बता दो आपका उनसे रिश्ता क्या है
आज हर कोई खुले में पूछने लगा है
चेहरे की सरगोशियां छुप न सकी है
आपकी खामोशियाँ कुछ कह रही है
वाक़िफ़-ए-उल्फ़त जमाना रहे सही
नादान इकरार उलझन का सबब है
सरेआम मत कर देना इज़हार कहीं
उल्फत की आबरू दांव पर लगी है
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