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कभी गिरे कभी संभले
थोड़े चलना सीख जाए।
आओ फिर शरुआत करे।
एक बार छोटे बालक बन जाये।
गिल्ली डंडे कंचे लाये।
मिट्टी के घरोंदे बनाये।
दूर दूर तक चक्कर घुमाये।
आओ छोटे बालक बन जाये।
दूर कितने निकल आये।
पुराने पैर के निशान ढूंढे।
चलने लगे उन निशानों पर।
आओ छोटे बालक बन जाये ।
टूटी स्लेटों पर अक्षर उगाए।
बड़े बड़े बस्ते उठाये ।
चलो एक बार स्कूल हो आये।
आओ छोटे बालक बन जाये।
कभी घर मे डाँट खाये।
टीचर की छड़ी से डर जाए।
क्लास में बच्चों से बतियाये।
आओ छोटे बालक बन जाये।
ना कोई चिंता थी ना तनाव।
कहाँ गए वो सुनहरे पल।
आओ उन्हें एक बार लौटाए।
फिर छोटे से बालक बन जाये ।
कैसे बचपन फिसल जाता है।
जिमेवारी के बोझ तले दबे जाते।
क्यों नही पुराना अहसास जगाए।
आओ छोटे बालक बन जाये।
#सुरेश_गुप्ता
स्वरचित
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