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राष्ट्रीय रंगमंच पर नट आए सजे हुए
और दर्शक यह अभिलाषा लिए हुए
पर्दा फिर खुला खुलते ही गिर गया
धीरे से पर्दा उठता दर्शक देखते हुए
बेबसी का गुस्सा रहा टपकता हुआ
कैसी आत्मवंचना का दौर रहा यह
अमर्यादित आचरण की दुहाई देता
सूत्रधार भी तो था एक नट बने हुए
दृश्य का अंत था शुरू होने से पहले
दर्शक शांत थे पर्दे का पटाक्षेप हुआ
पूछ रहे थे नाकामी किसके सर थी
सूत्रधार सदा नटो को दोष देते हुए
थोड़ी कानाफुंसी कुछ आवाज़ हुई
फिर दृश्य बदला नट काले वस्त्रों में
अंपायर तो था बैट्समैन बना हुआ
बॉलिंग होती रही सर न बचाते हुए
पार्श्व से शोर उठे दर्शक निढाल था
खेल निर्विघ्न चला नाटक यह हुआ
रंगमंच था नट थे पर इच्छा नही थी
पर्दा काम करे बाकी सब शांत रहा
नेपथ्य से उठी हलचल दबती रही
नाटक ऐसा था क्या इसे नाम देते
आलम लोकतंत्र में सजे सदन का
लुटते से दर्शक निष्क्रिय देखते रहे
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