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प्रियतम मिलन को मनवा क्यों गली गली भटके
प्रियतम खड़ा सन्मुख तेरे घूंघट के पट न खोले
सीधी राह सुझाता जाए तू गली गली भटक जाए
कभी पहुंचे काम के द्वारे कभी क्रोध पनप जाए
क्रोध जन्म देता मोह को मोह लोभ गली ले आए
उलझा है इस भूलभुलैया में मिलन कैसे हो पाए
कौन है तू कहाँ से आया और कहां तुझे जाना है
मुंह से हटा संशय का पर्दा जीवन सफल हो जाए
कहाँ जग जा रहा पल भर सोच विचार देख ले
बैठ गुरु श्री चरणों मे अर्पित मन सुमन ये करले
कहते है जमाने में बिन मरे स्वर्ग कहाँ मिलता है
वह बैठा संसार हारने पर गांडीव तुझे उठाना है
गुरु आया है बन खिवैया और मत अब देर कर
शुभ घड़ी में हो तैयार मिट जा गुरु पार उतारेंगे
जो बैठ गया नाव में भवसागर पार उत्तर जाना है
उघाड़ नयन पट आज गोविंद गुरु बन आया है
मत करना सोच अब जीवन भर अफसोस रहेगा
वो खड़ा था तेरे द्वार तू पट बंद कर खड़ा रहा था
मिला है ऐसा सुअवसर आज मिलन का मौक़ा है
झुको सतगुरु चरणों मे आज शुभदिवस आया है
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