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नही टूटा तब भी जब मां का वचन माना
नही था इतना क्षुब्ध जब सीते को खोया
मैंने दिल से माना जब जब वक्त ने चाहा
बोले राम लक्ष्मण से आज क्षुब्ध मन मेरा
आज तक कोई क्षण मुझे नही तोड़ पाया
प्रजा की आवाज़ अंदर तक कसौट गयी
भाई क्रूर क्यों है सार्वजनिक जीवन इतना
बोले राम लक्ष्मण से आज क्षुब्ध मन मेरा
आज इस कठिन परीक्षा से गुजर जाना है
कठोर राज निर्णय से दिल घबराने लगा है
सीता का सामना कर पाऊं ये साहस नही
बोले राम लक्ष्मण से आज क्षुब्ध मन मेरा
डरा नही जब चौदह हजार राक्षस मारे थे
जा समुद्रपार जब रावण को ललकारा था
क्या करता मैं आखिर राजधर्म ये चाहता
बोले राम लक्ष्मण से आज क्षुब्ध मन मेरा
प्रजापालक नैतिकता नही छोड़ सकता
धर्म छोडूं प्रजा का आचरण दूषित होगा
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