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जिसे मैं सोचता जाऊं सिरे से
उसे अब भी मेरी पहचान है क्या
मेरी इक आह भी जिसको रुलाती थी कभी
वो मेरे जख्मों से अब अनजान हैं क्या
माना ये ज़ख्म पुराने हैं, अरसों से हैं ये भरे हुए
लेकिन इन खोए जख्मों क
उसे अब भी मेरी पहचान है क्या
मेरी इक आह भी जिसको रुलाती थी कभी
वो मेरे जख्मों से अब अनजान हैं क्या
माना ये ज़ख्म पुराने हैं, अरसों से हैं ये भरे हुए
लेकिन इन खोए जख्मों क
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