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जाना कहाँ ? रस्ता तो है ,हालत थोड़ी खस्ता तो है
नाकामयाबी का भी डर,पर चल पड़ेंगे आह भर
कहने वाले कई मिलेंगे ,सुनने वाले कम मिलेंगे
तपेगी तन चमड़ी भी,ना पास होगी दमड़ी भी
पर ढोलकी अंदाज से और फकीरी आगाज से
इस राह मे खुद को पुकारा और चले
खुद ही बने खुद का सहारा और चले
बाकी बची जो, साख को मुट्ठी समेटे,
विफलता की राख़ को तन पर लपेटे
लो चल दिए है,हलाहल को कंठ धरने
मुश्किलों को पूरे दम से बांह भरने
अडचनों के फैले झंझावात थम ही जाएंगे
गुत्थी के बीचों-बीच कूदेंगे तो सुलझा पाएंगे
सफलता के पंछी गाते,सुंदरबन की छाँव से
लो उतरकर देख लो अब स्थिरता की नाव से
सफलता की लहरें आ टकरा रही है पाँव से ॥
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