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जाना पहचाना सा लगता है
हर वो अजनबी जो चेहरे पर अपने
एक झूठी सी मुस्कुराहट का
नक़ाब लगाए घूमता है
जो अपने हर एक दुख को हरा कर
आगे बढ़ जाने का फ़ितूर
दिल में छुपाए घूमता है
जो बेशक टूट फूट गया है भीतर से
बिल्कुल काँच की तरह मगर फिर भी
कुछ कर जाने की एक आग को
अपने अंदर जलाए घूमता है.
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