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दूर दृष्टि, चाँद को दीखना तो नहीं,
और न तो सूरज को खोजना ।
अंकुर निकलते हैं पृथ्वी के दबाव में ,
मगर नज़रो के दबे तले कैसे बीज बोने।।
अब देख सकता हूँ ,
तो सब आँखों में , मेरे कल कि एक मुख्य निराशा ,
अब सुन सकता हूँ,
तो बस मेरे कल कि वो खड़खड़ाती सिसकी ,
लोग मुझे भूलना चाहते हैं , मेरे कल को नहीं ।।
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