
गूंजी है किलकारी आज मेरे ाँगने में!
कि रोये जाये मेरा कान्हा, हँसे जाएं हम !!
आँखों में ख़ुशी के आँसूँ, ठहर ही ना पाए हैं
नन्हे लाल को उठाते हुए हाथ थरथराये हैं !!
कभी नानी की गोद में तो कभी दादी की गोद में
मेरे लल्ला की, मासूमियत टपकी जाए है !!
होंठो पे चौड़ी मुस्कान लिए, नानू भी कतार में आये हैं
इक बार गोद में लेते हुए, ये दिल हारे जाए हैं
कि उसके चेहरे से नज़र हट ही ना पाए है !
नन्हे लाल के होंठों पे मुस्कान बिखरी जाए रे !!
बाहें फैलाये मौसा - मौसी(२) भी दौड़े आए हैं,
लड्डू गोपाल को उठाते हुए, ये मन ही मन हर्षाये हैं
कि उसकी हथेली पर, नज़र का टीका ये लगाए हैं
हाये! मेरे लल्ला की आँखों से शरारत छलकी जाए है !!
ढेरों ख्वाहिशें दिल में समेटे हुए, आँखों में नमी इनकी भी तैरी जाए है !
कि इक दफा गोद में उठाने को, अंतर्मन में ये साहस जुटाए हैं !
ये मेरे लल्ला की अटखेलियाँ, एहसास पैतृत्व का कराये है !!
ये कोई और नहीं बल्कि पिता कहलाये हैं !!
आँखों में असीम प्यार लिए, अपने सारे कष्टों को भुलाए है,
आँचल में हर दुःख को समेटे, ये बरगद के पेड़ सा छाँव बनी जाए रे
कि अपने लल्ला की छोटी सी तकलीफ भी, एहसास मातृत्व का कराये है
ये कोई और नहीं बल्कि माँ, और इनकी जननी कहलाये है !!
हाँ, गूंजी है किलकारी आज मेरे ाँगने में!
कि रोये जाये मेरा कान्हा, हँसे जाएं हम !!
-Shweta
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