
चाहने वालों की भी हिमाक़त देखो..
सवाल भी करते हैं, और जवाब भी नहीं सुनते ।
ख्वाहिश अपनी रखते हैं और गुज़ारिश का नाम देते हैं ॥
सवाल करते हैं -
क्यूँ हर दफ़ा बीते यार की ही कहानी लिखते हो ?
क्यूँ हर वक्त टूटे दिल के तार बुनते हो ?
क्यूँ हर दफ़ा दर्द-ए-दिल की ही रवानी लिखते हो?
क्यूँ भूलते नहीं तुम, उनकी पुरानी यादों को ?
क्यूँ बहलाते नहीं तुम, सूने में अपने अंतर्मन को ?
उन लम्हों में, चंद वादों, इरादों के सिवाय, आख़िर रखा क्या है?
क्यूँ दफ़नाते नहीं तुम, उनके दिय एहसासों को ??
और खाहिश कैसे जाहिर करते हैं देखो :
एक बार के लिए ही सही, तम्मन्ना हमारी भी सुनो ,
अर्रे, जो हर रोज़ सताए, उन्हें ज़रा किनारा तो करो ।
हमारा दिल रखने के लिए ही सही, कोई इशारा तो करो॥
कि दिल के मोहल्ले में, दीदार तुम्हारा भी हो
ख्वाहिश इतनी ही रखते हैं ।
नज़र भर तुम्हें देखें, गुज़ारिश इतनी ही करते हैं ।
किसी शाम महफ़िल हमारी भी सजे, दुआ इतनी ही करते हैं
और एक दिन ऐसा भी आए
हमारी ख्वाहिश भी जायज़ लगे
इल्तज़ा बस इतनी ही करते हैं ॥
-Shweta
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