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चाहने वालों की भी हिमाक़त देखो..
सवाल भी करते हैं, और जवाब भी नहीं सुनते ।
ख्वाहिश अपनी रखते हैं और गुज़ारिश का नाम देते हैं ॥
सवाल करते हैं -
क्यूँ हर दफ़ा बीते यार की ही कहानी लिखते हो ?
क्यूँ हर वक्त टूटे दिल के तार बुनते हो ?
क्यूँ हर दफ़ा दर्द-ए-दिल की ही रवानी लिखते हो?
क्यूँ भूलते नहीं तुम, उनकी पुरानी यादों को ?
क्यूँ बहलाते नहीं तुम, सूने में अपने अंतर्मन को ?
उन लम्हों में, चंद वादों, इरादों के सिवाय, आख़िर रखा क्या है?
क्यूँ दफ़नाते नहीं तुम
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