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शराब होठों पे रह जाए, भी तो क्या?
बुझाती है प्यास, तो पिला मुझे ||
अब ये लत लग जाए, भी तो क्या?
जिसे लगाने को होठों से कई मर्तबा सोचा,
अब वो गले से उतर जाए, भी तो क्या?
कौन है? जिसने रात भर पिलाई मुझे|
मैं ये भूल जाउ, भी तो क्या?
होंश में हूँ, ये लगता हैं मुझे|
नशा आँखो तक उतर आए, भी तो क्या?
संभाल कर चल रहा हूँ, लकिन
पाव कहीं फिसल जाए, भी तो क्या?
उतार फैकुंगा इस नशे को मैं,
साकी फिर पिला दे, भी तो क्या?
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