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उसने इठलाकर मेरा हाथ पकड़ा,
और बोली......
दो पल सुकून से बैठो मेरे पास|
और टकटकी लगाई मेरे चहरे को देखती रही||
अनगिनत सवालों के गहरे समंदर,
उसकी आँखों में उमड़ रहे थे|
कुछ लहरें,
जो उसकी पलकों पर ठहरी थी,
सरक कर गालों पर आ गिरी|
अपने होठों के साहिलों पर
मैंने
उन नम लहरों को सोख लिया|
बस इतना हुआ
क़ि
उसे "सुकून" मिला और मुझे "खारा पानी"||
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