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एक अजीब सी आदत हो गई है मुझे,
खुद को मसरूफ़ रखने की आदत।
आँखे .... सोना चाहती है।
एक लम्बा सुकून भर कर सांसें रुक जाना चाहती है।
धड़कन ठहराना चाहती है।
नसों मे दौड़ते लहू की रवानगी थमना चाहती है।
खयालो की उधेड़ बुन मे उलझा सा दिमाग तन्हाई चाहता है।
और रूह जिस्म की इस मोटी चादर को उघाद् कर बाहर आना चाहती है।
मगर,
एक अजीब सी आदत हो गई है मुझे,
खुद को मसरूफ़ रखने की आदत।
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