युक्ति मुक्ति की's image
2 min read

युक्ति मुक्ति की

shvmnshdshvmnshd June 16, 2020
Share0 Bookmarks 450 Reads0 Likes

ये रास्ते खत्म क्यों नहीं हो रहे?

हमारे पास बचे हैं सिर्फ ये शब्द!

फटी कमीज और ढीला पजामा के

नीचे घिसी हुई चप्पलें और घिसती जा रही हैं!


सिर पर खुला आसमान है

और पाँवों पर तपती जमीन

आँखे खुली रोशनी में भी

ढूंढ रहीं हैं धुँधलापन


कन्धे पर टँगा हुआ जरूरी सामान

जरूरत से ज्यादा लग रहा है

हमें नहीं आती गंध बासी रोटी व

संतरे के छिलके से भी

पर नहीं बुझती प्यास इस

तपते पानी से


बस आश है गाँव पास है

नसों पर दौड़ता खून खौल रहा है

खुद के खून से मिलने के लिए

कंकरीट की सड़क भी

मखमल की कालीन लग रही है

चप्पल के छेद से


हम रखेगें याद

सुनाएंगे कहानी भावी पीढ़ी को

जब तुम्हारे सिरों पर शीतल छत थी

हम तपते आसमान और

जलती जमीन के बीच थे।


तुम चिपके थे

टीवी पर आती पल पल की खबर से

हम देख रहे थे

धँसती जमीन को

सूख रही नदियों को

सूखते पेड़ों को

जिनमें शीतलता छीण थी


पक्षी और बादल के टुकड़े का भी

निशान नहीं थे आसमान पर

तुम महामारी से मुक्ति चाहते थे

हम मुक्ति चाहते थे

गरीबी की बीमारी से भी


युक्ति नहीं मिल रही थी

मुक्ति की

क्योंकि हम अभिनय नहीं कर सकते

तुम्हारी तरह


तुम्हारे पास ट्विटर और फेसबुक एकाउंट हैं

हमारे पास किसी बैंक का भी एकाउंट नहीं

गर होता भी तो चन्द रुपयों के खातिर

चलते यूँ ही पैदल बैंक तक 

घर से निकल कर।


~विद्रोही

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts