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मै एक छोटी सी बच्ची थी,
कुछ प्यारी सी,भोली सी
खेलती गुड़ियों से थी,
ना किसी की फिक्र
चोटी सी मेरी दुनिया,
जिसमें न आंसू,ना बेबसी।
कुछ था तो सिर्फ प्यार,
मां का मेरे लिए
मेरा मेरी गुड़ियों के लिऐ।
ना जिम्मेदारी,ना दुनियादारी,
सोचा नहीं था
कभी बड़ी हो जाऊंगी।
फिर बाबा मुझे विदा कर देंगे।
कुछ सपने कुछ आशाएं
मन में लिए,समय बीता,
लोग बदले।
सब कुछ बदलता चला गया।
वो सुख भरे दिन,
जो बाबा के यहां बिताए,
ना जाने किस कोने में
धूल में लिपटा पड़ा है।
जिसे मैं याद भर,कर सकती हूं।
अब बाकी हैं सिर्फ जिम्मेदारियां।
~शुभ्रा
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