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जैसे अब तू मुझमें हो कर भी मुझमें नही रहता।
वैसे मैं अब इस शहर में हो कर भी,
इस शहर में नही रहता।
कब तक मैं दुसरो को सलिखा देता रहु,
मैं खुदी में हो कर भी,
अब खुदी में नही रहता।
तुझे फिर पाने के लिए खुद को धोखा दिया मैंने,
अब कई बार खुद को भी पाने का,
मौका नही रहता।
अब अपने रवैय्ये की ही क्या बात करूं,
घर में तो रहता हूँ,
मैं अब लोगों की नज़र में नही रहता।
हाँ कभी जीवन था मिरि इस कहानी में,
अब कई बार जवानी में हो कर भी,
रवानी में नही रहता।
अब फिर से कई दोस्त नज़र आते हैं मिरे,
मगर मैं दोस्ती में हो कर भी,
दोस्तो में नही रहता।
मैंने तिरी कहनी भी कितनी दिलचस्प कर दी,
तू हिस्सा अपनो की कहानी का हो कर भी,
कहानी में नही रहता।
~Raag
वैसे मैं अब इस शहर में हो कर भी,
इस शहर में नही रहता।
कब तक मैं दुसरो को सलिखा देता रहु,
मैं खुदी में हो कर भी,
अब खुदी में नही रहता।
तुझे फिर पाने के लिए खुद को धोखा दिया मैंने,
अब कई बार खुद को भी पाने का,
मौका नही रहता।
अब अपने रवैय्ये की ही क्या बात करूं,
घर में तो रहता हूँ,
मैं अब लोगों की नज़र में नही रहता।
हाँ कभी जीवन था मिरि इस कहानी में,
अब कई बार जवानी में हो कर भी,
रवानी में नही रहता।
अब फिर से कई दोस्त नज़र आते हैं मिरे,
मगर मैं दोस्ती में हो कर भी,
दोस्तो में नही रहता।
मैंने तिरी कहनी भी कितनी दिलचस्प कर दी,
तू हिस्सा अपनो की कहानी का हो कर भी,
कहानी में नही रहता।
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